रविवार, 1 अप्रैल 2012

दिनेश त्रिवेदी ओर ममता बनर्जी ..एक तीर कई शिकार


शुक्रवार, 23 मार्च 2012

दिनेश त्रिवेदी ओर ममता बनर्जी ..एक तीर कई शिकार

दिनेश त्रिवेदी  ओर ममता बनर्जी ..एक तीर कई शिकार .ममता बनर्जी कभी भी दिनेश त्रिवेदी को लेकर सहज नहीं थी उनके रेल मंत्री बनने के बाद से ही ममता के कई करीबी उनकी जासूसी में लगे हुए थे यहाँ तक की उनके बारे में उलटी-सीधी ख़बरें ममता तक पहुंचाई जारही थी लेकिन त्रिवेदी बनर्जी की मजबूरी थे क्योंकि पार्टी में पश्चिम बंगाल से बाहर के वे अकेले सांसद थे सो वे बंगाल के नेतृतव में कोई चुनौती पैदा नहीं कर सकते थे,दूसरे तृणमूल को बाहर की दुनिया ख़ास कर कारोबारी दुनिया से जोड़ने वाले वे अकेले कड़ी थे इस नाते ममता के साथ उनके नरम-गरम सम्बन्ध चल रहे थे..पर जब पंजाब के रहने वाले ओर झारखण्ड से राज्यसभा बने k d सिंह ने पश्चिम बंगाल की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन की तो ममता बनर्जी को एक अखिल भारतीय नेटवर्किंग  वाला आदमी मिल गया सिंह के कारोबारी सम्बन्ध को परखने के बाद ममता इस नतीजे पर पहुंची की अब दिनेश त्रिवेदी को हाशिये पर डाला जा सकता है बस इसके लिए एक मौका चाहिए था रेल बजट ने यही मौका दे दिया हालाँकि ममता के करीबी यों का कहना है की किराया बढाने के नाम पर ममता एकदम से त्रिवेदी को हटाने का फेसला नहीं लेती ... अगर वे बजट के बाद मीडिया के सामने यू शहीदाना अंदाज में इंटरव्यू नहीं देते चूँकि पहले तृणमूल कांग्रेस का नजरिया किराए में कमी करने वाला था ,ओर खुद ममता भी चाहती थी की जनरल ओर स्लीपर क्लास के किराए में हुई बढ़ोत्तरी कम कर दी जाए ,,,लेकिन जैसे ही सुदीप वन्धोपाध्याय ने मीडिया में त्रिवेदी के खिलाफ बोलना शुरू किया त्रिवेदी ने भी उसका जवाब देना शुरू कर दिया ममता से बात करने ओर अपना पक्ष रखने की बजाय उन्होंने अपने को शहीद बनाने की रन निति अपनाई..ओर इसी बीच पश्चिम बंगाल कांग्रेस ओर मीडिया से लेकर उधोग जगत में त्रिवेदी की वाहवाही होने लगी ममता ने जब उनका कद बढ़ते हुए देखा तो किराया बढोत्तरी का मुद्दा बनाकर त्रिवेदी को दरकिनार करने की रणनीति बना डाली ममता ने एक तीर से कई शिकार किये ओर केंद्र को भी बता दिया की बजट में बढ़ोत्तरी ना हो तो ही ठीक रहेगा ...   .ममता बनर्जी कभी भी दिनेश त्रिवेदी को लेकर सहज नहीं थी उनके रेल मंत्री बनने के बाद से ही ममता के कई करीबी उनकी जासूसी में लगे हुए थे यहाँ तक की उनके बारे में उलटी-सीधी ख़बरें ममता तक पहुंचाई जारही थी लेकिन त्रिवेदी बनर्जी की मजबूरी थे क्योंकि पार्टी में पश्चिम बंगाल से बाहर के वे अकेले सांसद थे सो वे बंगाल के नेतृतव में कोई चुनौती पैदा नहीं कर सकते थे,दूसरे तृणमूल को बाहर की दुनिया ख़ास कर कारोबारी दुनिया से जोड़ने वाले वे अकेले कड़ी थे इस नाते ममता के साथ उनके नरम-गरम सम्बन्ध चल रहे थे..पर जब पंजाब के रहने वाले ओर झारखण्ड से राज्यसभा बने k d सिंह ने पश्चिम बंगाल की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन की तो ममता बनर्जी को एक अखिल भारतीय नेटवर्किंग  वाला आदमी मिल गया सिंह के कारोबारी सम्बन्ध को परखने के बाद ममता इस नतीजे पर पहुंची की अब दिनेश त्रिवेदी को हाशिये पर डाला जा सकता है बस इसके लिए एक मौका चाहिए था रेल बजट ने यही मौका दे दिया हालाँकि ममता के करीबी यों का कहना है की किराया बढाने के नाम पर ममता एकदम से त्रिवेदी को हटाने का फेसला नहीं लेती ... अगर वे बजट के बाद मीडिया के सामने यू शहीदाना अंदाज में इंटरव्यू नहीं देते चूँकि पहले तृणमूल कांग्रेस का नजरिया किराए में कमी करने वाला था ,ओर खुद ममता भी चाहती थी की जनरल ओर स्लीपर क्लास के किराए में हुई बढ़ोत्तरी कम कर दी जाए ,,,लेकिन जैसे ही सुदीप वन्धोपाध्याय ने मीडिया में त्रिवेदी के खिलाफ बोलना शुरू किया त्रिवेदी ने भी उसका जवाब देना शुरू कर दिया ममता से बात करने ओर अपना पक्ष रखने की बजाय उन्होंने अपने को शहीद बनाने की रन निति अपनाई..ओर इसी बीच पश्चिम बंगाल कांग्रेस ओर मीडिया से लेकर उधोग जगत में त्रिवेदी की वाहवाही होने लगी ममता ने जब उनका कद बढ़ते हुए देखा तो किराया बढोत्तरी का मुद्दा बनाकर त्रिवेदी को दरकिनार करने की रणनीति बना डाली ममता ने एक तीर से कई शिकार किये ओर केंद्र को भी बता दिया की बजट में बढ़ोत्तरी ना हो तो ही ठीक रहेगा ... 

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